श्रीकांत तालागेरी के लेख The Three Grades of Anti-Hinduism का हिन्दी अनुवाद

श्रीकांत तालागेरी के लेख The Three Grades of Anti-Hinduism का अनाधिकारिक हिन्दी अनुवाद। 
मूल अंग्रेज़ी लेख (०६ मई २०२३ को प्रकाशित) के लिए उपरोक्त अंग्रेज़ी शीर्षक पर क्लिक करें। 


हिन्दूविरोध के तीन स्तर 


श्रीकांत जी. तालागेरी


हाल ही में किसी ने एक सेक्युलरवादी हिन्दू द्वारा डाली गयी एक फेसबुक पोस्ट, और उस पर एक कट्टर मुस्लिम द्वारा  प्रतिक्रिया को साथ-साथ दर्शा कर, एक आम कट्टर मुस्लिम और एक सेक्युलरवादी "हिन्दू" के बीच के गहन अन्तर को चित्रित किया:


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चित्र का हिन्दी रूपान्तर:

सेक्युलरवादी हिन्दू (अंकिता चौधरी) - "मैं दीवाली पर हिन्दू हूँ; ईद पर मुस्लिम; बैसाखी पर सिख; और क्रिसमस पर क्रिश्चन। मैं भारत के सेक्युलरवाद की मिसाल हूँ। सभी को ईद मुबारक़।"
कट्टर मुस्लिम (मुहम्मद क़ासिम) - "मैं मुस्लिम हूँ और हमेशा मुस्लिम ही रहूँगा। किसी के तुष्टिकरण के लिए मुझे अपने बुनियादी विश्वास को विकृत करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
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इन दोनों पोस्टों को एक साथ दिखाने वाले व्यक्ति का इरादा सामान्य कट्टर मुस्लिम और सेक्युलरवादी हिन्दू के बीच के अंतर को स्पष्ट करना था। हालाँकि यह अंतर-विशेष निश्चित रूप से चित्रित किया गया है , किन्तु यहाँ पर एक और अंतर, एक और बुनियादी फ़र्क़ को, और भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है : एक ओर तो सामान्य मुस्लिम और सेक्युलरवादी "हिन्दू" के बीच का अंतर है, और दूसरी ओर भाजपाई "हिन्दू" । और यह बुनियादी अंतर एक ओर ईमानदारी, और दूसरी ओर धूर्तता  (विश्वासघात, पाखंड और उल्लासपूर्ण निर्लज्जता) के बीच का अंतर है।

कोई उनके विचारों, बयानों और व्यवहारों को पसंद करता हो या नहीं, किन्तु कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि दोनों [1- सामान्य कट्टर मुस्लिम (जैसा कि ऊपर मुहम्मद कासिम द्वारा प्रदर्शित है) और 2- सेक्युलरवादी "हिन्दू" (जैसा कि ऊपर अंकिता चौधरी द्वारा दर्शाया गया है)] दो अलग-अलग रूपों में ईमानदारी दर्शाते हैंदोनों इस बारे में स्पष्ट और ईमानदार हैं कि वे किसमें विश्वास करते हैं या वे किसके समर्थन में खड़े हैं । दूसरी ओर, भाजपाई "हिन्दू", निर्विवाद रूप से धूर्तता का प्रतिनिधित्व करते हैं: विश्वासघातपाखंड और उल्लासपूर्ण निर्लज्जता : वह हिन्दुत्व की बात करते हैं (विशेष रूप से जब चुनाव मुँह बाँये खड़े हों, या जब भाजपा-विरोधी संस्थाओं की आलोचना करने की बात हो) परन्तु, जब व्यावहारिक या वास्तविक मुद्दों की बात आती है, तो वे बिल्कुल सेक्युलरवादी "हिन्दू" की तरह व्यवहार और कार्य करते हैं । समय आ गया है कि हम लोगों का मूल्यांकन उनकी ईमानदारी के आधार पर करें, कि वे किसमें विश्वास करते हैं और किसके समर्थन में खड़े हैं, बजाय इसके कि हमें वह पसंद है या नहीं जिसमें कि वे विश्वास करने का या जिसके समर्थन में खड़े होने का दावा करते हैं।

हिन्दू-विरोध के पैमाने पर, मैं हिन्दू/हिंदुत्व के तीन शत्रुओं को इस प्रकार रखूँगा:

हिन्दू-विरोधी/ब्रेकिंग-इंडिया शक्तियाँ: ख़राब। 

धर्मनिरपेक्ष "हिन्दू": बदतर।

भाजपाई "हिन्दू": सबसे ख़राब




मुझे सबसे पहले यह बताना होगा कि मैंने (क) " सामान्य कट्टर मुसलमानों " के बजाय "एंटी-हिन्दू/ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियाँ" क्यों लिखा, और (ख) " भाजपा समर्थकों " के बजाय " भाजपाई 'हिन्दू'" क्यों:


हिन्दू-विरोधी/ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों के बारे में :

1. हालाँकि प्रत्येक सामान्य कट्टर मुसलमान मज़हब के मामलों में ठीक उपर्युक्त मुस्लिम की तरह ही सोचेगा (चाहे वह इसे मुहम्मद कासिम की तरह खुले तौर पर कहे, या विनम्रतापूर्वक चुप रहकर सोचे, अपने गैर-मुस्लिम मित्रों और परिचितों का लिहाज़ करते हुए या क्योंकि वह एक सामान्य जीवन जीना चाहता है, इसलिए, और कटु मज़हबी तर्कों और झगड़ों में शामिल नहीं होना चाहता है, इसलिए), परन्तु ज़रूरी नहीं कि ऐसे हर कट्टर मुसलमान को भारत को तोड़ने में दिलचस्पी हो (हालांकि बहुत संभव है कि ज़रूरत पड़ने पर उसकी सहानुभूति ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों के साथ हो)। 

2. फिर, निश्चित रूप से हमारे पास एक छोटी संख्या में ही सही प्रगतिशील या नाममात्र के मुसलमान हैं, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत पर शायद गर्व करते हों (या नहीं भी करते हों), लेकिन वे मज़हबी मामलों में "कट्टर" नहीं हैं, और इसलिए वे कभी भी ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों के साथ सहानुभूति में संभवतः नहीं होंगे। 

3. और अंततः, ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों के केवल "मुसलमानों" के अतिरिक्त, और भी कई चेहरे हैं: क्रिश्चन धर्मांतरणवादी, विदेशी एजेंट (भारतीय "हिंदुओं" सहित, चाहे वे उस जाति के नाम पर काम कर रहे हों या नहीं, जिसमें वे पैदा हुए थे), जड़ों से कटे हुए और आत्म-स्वरूप-घृणा करने वाले हिन्दू (चाहे वामपंथी हों या अन्य), आदि।

भाजपा समर्थकों के बारे में :    

1. यह आवश्यक नहीं कि भाजपा समर्थक केवल वे लोग हों जो "हिन्दू" होने का दावा करते हों। विशेष रूप से वर्तमान भाजपा शासन के मामले में, समर्थकों की एक भारी भीड़ है जिनकी बला से हिन्दू मुद्दे भाड़ में जाँय, भले ही वे खुले तौर पर ऐसा न कहते हों ─ लेकिन वे उनकी (हिन्दू मुद्दों की) परवाह करने का दिखावा भी नहीं करते हैं, सिवाय तब के, जब कि केवल नाम-के-वास्ते वे भाजपा के कार्यक्रमों में भाग ले रहे हों, विशेष रूप से "हिन्दू" (आरएसएस, वीएचपी, आदि) नेताओं की उपस्थिति में: उनका रुख़ बहुत साफ़ है कि वे भाजपा की पूर्णरूपेण पूंजीवादी और स्वार्थलोलुप नीतियों का समर्थन करते हैं, और समर्थन करते हैं उसका, जिसे भाजपा का "विकास" एजेंडा कहा जाता है (जो प्रश्रय देता है कॉर्पोरेट और धनाढ़्यों को, तथा विरोध करता है आम आदमी का और श्रम नीतियों का;  जिसमें शामिल हैं वनों तथा पर्यावरण-पारिस्थितिकी का बड़े पैमाने पर अंधाधुंध विनाश; सांस्कृतिक विरासत को तिलांजलि आदि-आदि)। हिन्दू-विरोधी / ब्रेकिंग-इंडिया शक्तियों और सेक्युलरवादी "हिंदुओं" के ही समान, ये भाजपा समर्थक भी भारत तथा हिन्दू धर्म के लिए उतने ही हानिकारक है, किंतु एक अलग रूप में; हालाँकि "वे किसके पक्ष में खड़े हैं" के बारे में ये भाजपा समर्थक (केवल जन्म से हिन्दू, वैचारिक दावों से नहीं) भी उतने ही ईमानदार हैं जितने कि हिन्दू-विरोधी / ब्रेकिंग-इंडिया शक्तियाँ और सेक्युलरवादी हिन्दू

2. भाजपा नेतृत्व और पार्टी के सदस्यों के बीच एक विशेष तबका है: सभी प्रकार के सेक्युलरवादी दलों के वे नेता (जन्म से हिन्दू), जो भाजपा में शामिल हो जाते हैं, ताकि उन्हें धन और शक्ति के मामले में व्यावहारिक सामरिक लाभ मिले (और जिन्हें भाजपा तुरंत पार्टी के आंतरिक और चुनावी लाभ वाले पदों पर आसीन कराती है, उन दीर्घकालिक सदस्यों की उपेक्षा करके जिन्होंने पार्टी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया)। ये नेता और नए सदस्य भी भाजपा में होने का कारण हिन्दू विचारधारा से इतर ही जताते हैं, और इस मामले में इन पर भी किसी भी तरह की धूर्तता का गंभीरता से आरोप नहीं लगाया जा सकता है

3. फिर भाजपा के भीतर "अल्पसंख्यक" समूह हैं, जिनमें मुस्लिम और ईसाई "नेता" और सदस्य शामिल हैं, जो व्यावहारिक सामरिक लाभ के लिए भाजपा में हैं जो उन्हें धन और शक्ति के मामले में मिलता है ─ और जो पार्टी के भीतर सेक्युलरवादी/अल्पसंख्यक गतिविधियां संचालित करते हैं। स्वाभाविक है कि वे "हिंदुत्व" के पक्ष में होने का कोई दावा नहीं करते हैं, और उन पर भी इस मामले में किसी भी धूर्तता का गंभीरता से आरोप नहीं लगाया जा सकता है।

4. भाजपा के भीतर "अल्पसंख्यक" वर्गों के ही संख्या में अतिसूक्ष्म, किन्तु अत्यंत सराहनीय सदस्य भी हैं (जिनमें से आरिफ मोहम्मद खान शायद सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं) जो सही अर्थों में, वास्तव में सेक्युलरवादी हैं। वे निश्चित रूप से ईमानदार हैं , लेकिन उन्हें भाजपाई "हिन्दू" नहीं कहा जा सकता है ।

5. अंत में, हमारे पास भाजपाई "हिंदुओं" की विशाल भीड़ है, जिन्होंने अपना सारा जीवन सेक्युलरवादी दलों, "बुद्धिजीवियों", और वामपंथियों के सेक्युलरवाद की आलोचना करने, और ब्रेकिंग-इंडिया शक्तियों की गतिविधियों का पर्दाफ़ाश करने में बिताया है। इनमें शामिल हैं: पुराने समय के जनसंघ समर्थक, नव-भाजपा समर्थक (1980-1985 के दौरान जेपी से अलगाव के बाद), और वे लोग जो 1985 के बाद विभिन्न चरणों में किसी-न-किसी हिन्दू मुद्दे या हिन्दू विचारधारा के आधार पर भाजपा के समर्थक बने। 

ये भाजपाई "हिन्दू" यह दावा करते रहते हैं कि वे हिन्दू हितों के लिए खड़े हैं, और वे सेक्युलरवादियों, वामपंथियों और अन्य ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों के हर हिन्दू-विरोधी कृत्य पर आक्रोश व्यक्त करना जारी रखते हैं। किसी भी विदेशी मंच या समाचार पत्र में हिन्दू धर्म या हिंदुत्व की हर आलोचना, और किसी भी गैर-भाजपा राजनेता या बौद्धिक या विदेशी संस्था के अल्पसंख्यक-समर्थक या हिन्दू-विरोधी कृत्य पर, वे हिन्दू धर्म या हिन्दू हितों की "रक्षा" के लिए लड़ने-भिड़ने को तैयार रहते हैं। परन्तु, जब भाजपा सरकार और उसका परिवार वे कार्य करते हैं, जिनमें से अधिकतर बहुत अधिक स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यक-समर्थक और हिन्दू-विरोधी होते हैं ─ और हिन्दू धर्म, हिंदुत्व और हिन्दू हितों के लिए कहीं अधिक घातक होते हैं, बनिस्पत खुले तौर पर सेक्युलरवादी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किए गए किसी भी कार्य से ─ तब यही "हिन्दू" भाजपा समर्थक न केवल इनमें से हर एक कृत्य पर पूरी तरह से आंखें मूंद लेते हैं, बल्कि यदि आवश्यक हो, तो बचाव, लीपापोती और अंततः उन कृत्यों का महिमामंडन भी करते हैं ! कमाल की बात यह है कि ऐसा नहीं है कि वे अब अपने पहले के रुख को गलत मान लेते हैं और कहते हैं कि उन्हें अब यह समझ में आ गया है कि अल्पसंख्यक-समर्थक और हिन्दू-विरोधी हरकतें देश की भलाई के लिए हैं (!), वे बस सेक्युलरवादियों, वामपंथियों और अन्य (भारतीय और विदेशी) ब्रेकिंग-इंडिया-शक्तियों की उन्हीं बातों पर निंदा करते रहते हैं, जिनके लिए वे अब भाजपा सरकार का बचाव, लीपापोती और महिमामंडन करते हैं, और वे फिर भी दावा करते हैं कि वे हिन्दू धर्म, हिंदुत्व और हिन्दू हितों के लिए खड़े हैं! 

संक्षेप में, भारत में सभी राजनीतिक संरचनाओं से संबंधित सभी लोगों के बीच, भाजपाई "हिन्दू" एकमात्र ऐसे भारतीय हैं जो अपने राजनीतिक दावों में नख-शिख़, आद्योपांत और निर्लज्जतापूर्वक धूर्त हैं । वे, किसी भी अन्य की तुलना में, उन शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें इतिहास में आने वाली पीढ़ियों द्वारा इस सदी के अगले कुछ दशकों में हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के सांगोपांग विनाश के लिए उत्तरदायी मुख्य शक्तियों के रूप में याद किया जाएगा।


मैंने पूर्वप्रकाशित लेखों में इस विषय पर पहले ही बहुत कुछ लिखा है, किंतु वास्तव में बहुत सारे प्रतिबद्ध हिन्दू हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर और विभिन्न अन्य सार्वजनिक मंचों पर भाजपा सरकार के अंतहीन विश्वासघात तथा पीठ में छुरा घोंपने वाले घातक कृत्यों पर ध्यान दिलाने, उनके दस्तावेज़ बनाने, और उन्हें प्रचारित करने के इस भगीरथ कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। इस प्रयास का भाजपाई हिंदुओं के परिप्रेक्ष्य से नक्कारख़ाने में तूती की आवाज़ साबित होना हिन्दू धर्म तथा भारत की एक विडंबना है। मैं इस विषय पर अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करने जा रहा हूं। मैं यहां केवल एक हालिया घटना के बारे में लिखूंगा जो मेरे लिए कफ़न की आख़िरी कील जैसा था। इसे समझने के लिए मुझे भाजपा के इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा। 

भाजपा का गठन 1980 में जनसंघ के रूपांतरण के द्वारा हुआ था, जो पहले 1977 में आपातकाल हटाए जाने के बाद जनता पार्टी नामक एक संयुक्त विपक्षी दल में विलय हो गया था। अन्य सेक्युलरवादी गैर-कांग्रेसी दलों के साथ जनसंघ के सुखद सहवास के बाद, यह नया अवतार (भाजपा) पूर्ववर्ती जनसंघ की तुलना में खुले तौर पर सेक्युलरवादी पार्टी के रूप में सामने आया, जिसे निश्चित रूप से "हिन्दू" आरएसएस का समर्थन प्राप्त था । चार साल बाद, 1984 में अपनी पहली लोकसभा में, पार्टी का ऐसा विनाश हुआ कि वह लगभग अस्तित्व से बाहर हो गई थी।

भारतीयों की वर्तमान पीढ़ियों को इस विनाश के विषय में संभवतः पूरी तरह से पता न हो (जिसे भाजपा पंडितों द्वारा बड़ी चतुराई से केवल इंदिरा गांधी की क्रूर हत्या के परिणाम के रूप में खारिज कर दिया जाता है) निम्नलिखित तथ्य हैं जो लोकसभा चुनाव 1984 की 543 सीटों के परिणामों द्वारा दर्शाए गए हैं:

कांग्रेस: ​​414.

तेलुगु देशम: 30.

सीपीआई(एम): 22.

निर्दलीय : 13.

एआईएडीएमके: 12.

जनता पार्टी: 10.

अकाली दल : 7.

सीपीआई: 6.

भारतीय समाजवादी कांग्रेस: ​​5.

लोकदल: 3.

आरएसपी: 3.

नेशनल कॉन्फ़्रेंस: 3.


हाँ, इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या ने कांग्रेस के पक्ष में लहर ज़रूर पैदा की, जिसे रिकॉर्ड 414 सीटें भी मिलीं। लेकिन ऊपर उन दलों की सूची देखें, जिनका भाजपा जैसा विनाश नहीं हुआ, न उस सीमा तक, न उस तरीक़े से

छह पार्टियों को 2-2 सीटें मिलीं : भाजपा, मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस, फॉरवर्ड ब्लॉक, डीएमके, और 2 (नियुक्त) एंग्लो-इंडियन!

[यह याद रखना चाहिए कि भाजपा द्वारा जीती गई दो सीटों में से एक, आंध्र प्रदेश में हनुमकोंडा, केवल तेलुगु देशम पार्टी की कृपा से थी। तेलुगु देशम पार्टी भारत में एकमात्र पार्टी रही, जिसने कांग्रेस के चक्रवात को पूरी तरह से झेला, और जिसने भाजपा को समर्थन दिया (हनुमकोंडा सीट पर)और भाजपा की दूसरी सीट, गुजरात में मेहसाणा, जनता पार्टी के समर्थन से जीती गयी। संक्षेप में: भाजपा वास्तव में 1984 में पूरी तरह से समाप्त हो गई थी]। 

केवल तीन दलों को भाजपा से कम सीटें मिली, यानी प्रत्येक को 1 सीट : कांग्रेस (जगजीवन राम), पीडब्ल्यूपी (महाराष्ट्र में) और प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम!



श्मशान की चिता से कैसे हुआ भाजपा का पुनर्जन्मक्या किसी ने राख पर अमृत वर्षा की? क्या भगवान कृष्ण ने निर्णय किया कि यह "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत " के लिए उपयुक्त अवसर था तथा स्वयं प्रकट होकर उन्होंने पार्टी को जीवनदान दिया? क्या हजारों वर्षों से हिमालय में तपस्या कर रहे ऋषि अपनी शक्तियों के साथ पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए पहाड़ों से उतरे थे? क्या हैरी पॉटर आया और अपनी जादू की छड़ी घुमाई?

नहीं! यह अयोध्या आंदोलन था, और केवल और केवल अयोध्या आंदोलन था, जिसने (भविष्य में) उत्तरोत्तर बढ़ते भाजपा के ग्राफ़ का प्रारंभ किया, जिसने 1984 में भाजपा को 2 सीटों से, 2019 में वर्तमान 303 सीटों पर ला पहुँचायाअयोध्या आंदोलन-रूपी धक्के के बिना, भाजपा आज भी लड़खड़ा रही होती, कई विपक्षी दलों में से केवल एक के रूप में (और यहां तक ​​कि मुख्य भी नहीं), जिसे गाहे-बगाहे शायद (किसी भी अन्य पार्टी की तरह) किसी अल्पायु गठबंधन सरकार के एक छोटे से घटक के रूप में जगह मिलती। 

अयोध्या आंदोलन -- उसके अनेक लघु-दीर्घ खण्ड; विविध विराट तथा गौण नायक, खलनायक, तथा अध्याय -- ये सारा कुछ एक लंबा तथा रुचिकर, उतार-चढ़ाव भरा इतिहास है। हालाँकि इस इतिहास में बहुसंख्य नायक और खलनायक थे, किन्तु जो एक नाम अन्य सभी से अलग था ─ हिन्दू दृष्टि से खलनायक और मुस्लिम परिप्रेक्ष्य से नायक ─ वह था: उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री (1989-1991), मुलायम सिंह यादवजिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में (1990 में) पुलिस को बाबरी-मस्जिद-संरचना के पास पहुंचे कार सेवकों (हिन्दू स्वयंसेवकों) पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें 16 कारसेवकों की मौत हो गई।   

इसे मोटे तौर पर कहें तो, जिनके बलिदान ने अयोध्या आंदोलन को हवा दी और जिनके शव-रूपी सोपानों पर आरोहण कर भाजपा भारतीय सिंहासन पर आसीन हुई, उनमें सर्वप्रमुख वे कार सेवक थे जिन्हें मुलायम सिंह यादव के आदेश पर मार डाला गया (दूसरे स्थान पर वे कार सेवक रहे होंगे जिन्हें गोधरा ट्रेन में जला दिया गया)। 

हाल ही में, 5 अप्रैल 2023 को, भाजपा ने बलिदानी कारसेवकों को उनके बलिदान की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, देश का दूसरा सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण (मरणोपरांत), मुलायम सिंह यादव को प्रदान किया।

भाजपा अब जो भी करती है, उससे किसी को कोई अचंभा नहीं होना चाहिए। न ही वास्तव में भाजपा सरकार के कृत्यों पर भाजपाई "हिंदुओं" की प्रतिक्रिया में किसी को और अधिक हतप्रभ करने की शक्ति होनी चाहिए। हम गैर-भाजपाई हिन्दू केवल इस भारतीय ऐनीमल फार्म के आम जानवर हैं, जो ऑरवेल के कालजयी कथानक के अंतिम दृश्य को पटल पर घटता देख रहे हैं, और अब तक हमें किसी भी चीज और हर चीज के लिए अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

परन्तु मेरे लिए, हालाँकि मेरी आँखें और कान हमेशा से खुले रहे हैं, और दिमाग और विवेक भी खुले हुए हैं, यह अविश्वसनीय था। न केवल भाजपा सरकार मुलायम सिंह को यह सर्वोच्च पुरस्कार दे रही है, बल्कि तथ्य यह है कि भाजपाई "हिन्दू" इससे पूरी तरह से अप्रभावित बने हुए हैं, और इस मामले पर सभी चर्चाओं को दरकिनार करते हुए भाजपा का समर्थन और बचाव करना जारी रखे हैं ─ मैंने निजी रूप से इंटरनेट पर और विभिन्न "हिन्दू" चर्चा समूहों पर इसका अनुभव किया है। अब, 2024 के प्रारंभ में होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए, "संत" और अयोध्या आंदोलन के नेताओं ने फैसला किया है कि "राम लला" का नया गौरवशाली मंदिर (हालांकि संरचना पर काम पूरी तरह से पूरा नहीं हुआ है और बाद में भी जारी रहेगा) जनवरी 2024 में उपासकों के लिए खोल दिया जाएगा, और इसके चुनाव पर पड़ने वाले आशानुरुप राजनीतिक परिणाम भी दिखाई देंगे। भाजपाई "हिन्दू" अब एक बार फिर उत्साही "हिन्दू" बनेंगे और 1990 में 16 कारसेवकों की गोली मारकर हत्या कराने के लिए मुलायम सिंह को पद्म विभूषण देने वाली पार्टी के पक्ष में बड़ी संख्या में वोट डालने जाकर मंदिर के "उद्घाटन" का उत्सव मनाएंगे, और इस तरह भाजपा के अयोध्या "कार्ड" को और सुदृढ़ बनायेंगे (जैसा कि उमा भारती ने एक बार साक्षात्कार में स्पष्ट रूप से अयोध्या मुद्दे (अयोध्या "कार्ड") को परिभाषित किया था)।

घिनौना तथ्य यह है कि मुलायम सिंह, जो कभी भाजपाई "हिंदुओं" के लिए खलनायक थे -- लेकिन अब उनके लिए एक नायक हैं, क्योंकि भाजपा के उदय में उनके योगदान को अब पार्टी द्वारा आधिकारिक मान्यता दे दी गई है -- हालांकि कारसेवकों के हत्यारे (आधुनिक जनरल डायर), और सामूहिक-बलात्कारियों के कृत्यों के समर्थक (2014 में मुंबई शक्ति मिल्स गैंग रेपिस्टों के लिए मुलायम के दरियादिल बचाव को याद करें) रहे थे, किन्तु उनकी खलनायकी का हर कदम स्पष्टता और ईमानदारी से परिपूर्ण था। बेशर्म ईमानदारीलेकिन फिर भी ईमानदारी।  उनके कारनामों के लिए उन्हें सम्मानित करने की अपनी हरकत के लिए भाजपा सरकार, और नए "रामलला" मंदिर की पृष्ठभूमि में मतपत्रों पर इसका समर्थन करने के लिए भाजपाई "हिन्दू", बेशर्म बेईमानी के दोषी होंगे। इस अकेले कृत्य से, भाजपा और उसके भाजपाई "हिन्दू" समर्थकों ने पूरे "हिन्दू" विमर्श को पुनः परिभाषित किया है और राजनीति में धूर्तता के सिद्धांत के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता साबित की है।

क्या इसका कभी अंत होने वाला है? श्रृंखला की अगली कड़ी पहले ही गुजरात में घट चुकी है: गुजरात में भाजपा  सरकार ने काजल हिंदुस्तानी की ज़मानत याचिका के विरुद्ध इस आधार पर अपील की है कि "काजल हिंदुस्तानी के भाषण ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जिससे सांप्रदायिक संघर्ष हुआ"। एक विद्वान भाजपा "हिन्दू" ने एक चर्चा समूह में इस आधार पर इस निर्णय बचाव किया कि यह "व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक" था!

क्या अगला कदम गुजरात में भाजपा सरकार द्वारा यह घोषणा होगी कि "गोधरा में ट्रेन में कारसेवकों के नारों ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाई जिसके कारण ट्रेन को जलाया गया "? क्या ट्रेन जलाने की घटना के आरोपियों के लिए इस बार और पद्म पुरस्कार आने वाले हैं? पीठ में छुरा घोंपने के प्रत्येक नए मामले के लिए भाजपाई "हिंदुओं" के क्षमाप्रार्थी बहाने सुनना अब और रुचिकर नहीं रह गया है।

भाजपा और भाजपाई "हिन्दू" बहुत स्पष्ट रूप से एक ऐसी शक्ति को दर्शाते हैं, जो भारत, हिन्दू धर्म और हिन्दू हितों के लिए बहुत अधिक खतरनाक है, और ब्रेकिंग इंडिया शक्तियों या सेक्युलरवादियों  की तुलना में कहीं अधिक भर्त्सनीय है ।



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